भारत देश के मूल निवासियों को पिछड़ा कहा गया, वे सब के सब श्रमजीवी हैं। कृषि के ए-टू-जेड काम करने वाले लोगों कों पिछड़ा वर्ग कहा गया। देशभर की खेतीअन्य पिछड़े वर्ग के लोगों के ऊपर ही निर्भर है। पिछड़े वर्ग के लोग खेती करने में हुनरवान भी है और हौसला बुलन्द भी है। बावजूद इसके वे पिछड़े हैं। जो ग्रामीण इंजी. हैं उन्हें पिछड़ा कहा गया भारत देश में बाहर से आये आर्यो ने देश के मूल निवासियों को सदा सर्वदा दबाने और गुलाम बनाये रखने के लिए वर्ण व्यवस्था बनाई और जातियाँ बनाई इसी षडयंत्रकारी निगाह से ब्राह्मणों ने जातिवार पेशा बनाया। अच्छे से अच्छे उत्पादन कर हम पिछड़े कहलाये। कारण उत्पादन करके हमने आगे बढ़ने मे अदूरदर्शिता बरती हमारा काम रहा अगड़ा और कहे गये पिछड़ा। समाज में जिन्होने जानलेवा वर्ण व्यवस्था बनायी और फैलायी जाति भेद ऊँच नीच का भेद भाव फैलाया, छुआछूत फैलाया गांव के श्रमजीवियों की जमीन जायदाद जिन्होने बेलज्ज और बेरहम होकर लूट ली। कब तक ऐसा चलेगा, पिछड़ों को होश में रहकर सोंचना होगा।
पिछड़ों की सबसे भयानक समस्या है कि वे यथास्थितिवादी हैं। किसी नये विचार व व्यवहार को वे ध्यान से सुनते नहीं, अनुसरण करना तो दूर की बात है। राष्ट्रपिता ज्योतिबा फुले ने अपनी जीवन संगिनी माता सावित्री बाई फुले को साथ लेकर शिक्षा की जो ज्योति जलाई उस पर देश भर के पिछड़ों ने बिलकुल ही ध्यान नहीं दिया। महामना ज्योतिबा फुले का शिक्षा मिशन पिछड़ों के आँगन में विफल हो गया। कोल्हापुर के महाराज छत्रपति शाहूजी महाराज ने पिछड़ों के अधिकारों के लिए बहुत ही क्रांतिकारी कदम उठाया। वर्ष 1902 में उन्होंने अपने राज में पिछड़ों के लिए 50 प्रतिशत आरक्षण लागू कर ऐतिहासिक कदम उठाया। पिछड़ों ने शिक्षा और सेवाओं में आरक्षण के लाभ को समझने का प्रयास ही नहीं किया। अधिकार और सम्मान प्राप्ति की लालसा उनमें जगी ही नहीं उनका देहावसान 1922 में हुआ। अपनी जिन्दगी में ही उन्होंने अपना सामाजिक और राजनीतिक क्रांति का वारिस डा. अम्बेडकर को तैयार कर लिया था। शाहू जी के सामाजिक दर्द को डा. अम्बेडकर ने समझा और सम्भाला।
पिछड़े वर्ग के लोग ज्योतिबाफुले को नहीं जानते, सावित्राबाई फुले को नहीं जानते, छत्रपति शाहूजी महाराज पेरियार रामास्वामी नायकर, पेरियार ललई सिंह यादव, वी.पी. मण्डल, रामस्वरूप वर्मा को नहीं जानते। ब्राह्मणवाद का रूप है हिन्दू धर्म। हिन्दू धर्म पिछड़ों के लिए न अतीत में हितकर था, न आज हितकर है, और न भविष्य में हितकर होगा। इस कारण पिछड़ों का विकास हिन्दू धर्म से पृथक होने और रहने में ही है। आज बाबा साहब के बताये रास्ते पर चलकर अनुसूचित वर्ग के लोग पिछड़ों से ज्यादा सम्मानजनक बन चुके हैं।
यह विश्व का मापदण्ड है कि जिस समाज का साहित्य श्रेष्ठ होता है, वही समाज श्रेष्ठ होता है। अंग्रेजी साहित्य की श्रेष्ठता के कारण विश्वभर में अंग्रेज श्रेष्ठ होगये। भारत में ब्राह्मणवादी साहित्य की श्रेष्ठता के कारण ब्राह्मण श्रेष्ठ हो गये। वेद पुराण स्मृतियाँ रामायण महाभारत गीता ये सबके सब ब्राह्मणों द्वारा रचित ब्राह्मणवादी साहित्य है। इन साहित्यों में पिछड़ों के सम्मान में रत्तीभर भी चर्चा नहीं है। उल्टे पिछड़ों के अपमान और विनाश के अनेकोंनेक सूत्र ब्राह्मणवादी साहित्य में भरे पड़े हैं। पिछड़ों को अब ब्राह्मणवादी साहित्यों को अपने घरों से निकालकर कचड़ें में फेंक देना चाहिए।
पिछड़ों पर सबसे घातक मार शिक्षा से दूर रखकर की गई है। स्कूल काँलेज में पाठ्यक्रम में आज भी कचड़ा परोसा जा रहा है। वेद पुराण और रामायण के अंश पढ़ाये जा रहे है। बुद्धिजीवियों को इन्हें रोकना चाहिए। यह सब पिछड़ों को पिछड़ा बनाये रखने का गम्भीर षड़यंत्र है। ब्राह्मणों का मन्दिर पिछड़ों के भरोसे चलता है। मन्दिर से पिछड़ों को अनेक प्रकार का भारी नुकसान हो रहा है। मन्दिर से पिछड़ों को जनशिक्षा और वैज्ञानिक शिक्षा से दूर किया जा रहा है। मन्दिर से पिछड़ों को ब्राह्मण और ब्राह्मणवाद दोनों का गुलाम बनाया जा रहा है। मन्दिर जाने से पिछड़ों ने अपने ही गांववासी अनुसूचित जाति के लोगों से घृणा करना सीख लिया। उनसे अपने को झूठा श्रेष्ठ मानना सीख लिया। मन्दिर जाने से पिछड़ों ने झूठे ईश्वर को जाना, मगर अपने सच्चे मार्गप्रदाता बुद्ध और ज्योतिबाफुले, पेरियार रामासामी नायकर को नहीं जाना। देश भर के पिछड़े ब्राह्मण और उनके मन्दिर के मारे हुए लोग है।
जब राजनीति विकास का कारगर हथियार बना, पिछड़ों की शक्ति सबको समझ में आ गई। कारण राजनीति मत से बनती और बिगड़ती है। मत के मालिक पिछड़े है। इसी कारण मतदान में सभी दलों को पिछड़ों से भय लगने लगा है। धर्म के धरातल पर जितना भय ब्राह्मणों से था, उतना ही भय पिछड़ों से स्वतः बन गया। धर्म के धरातल पर जितना महत्वपूर्ण ब्राह्मण था राजनीति के धरातल पर उतना ही महत्वपूर्ण पिछड़े हो गये। इस मर्म को पिछड़े समझें और परस्पर विचार करें। राजनीति का यह महत्व तब कमजोर होता है जब पिछड़ें आपस में कई खेमे में बंट जाते है। राजनीति में पिछड़े एक रहेंगे, देशभर में पिछड़ों का राज होगा राजनीति में यदि पिछड़े बंटे रहेंगे, तो कमजोर कौम बनाकर रहेगे। पिछड़ों को राजनीतिक स्तर पर कम करने ेके लिए हर तरह से षड़यंत्र किया जाता है।
ब्राह्मणों की सफलता का राज है- पिछड़ों के डण्डें में ब्राह्मणों का झण्डा। उन्होने मुलायम सिंह यादव को यह रहस्य समझाया कि अगर राज करना है तब पिछड़े-दलित के डण्डे से ब्राह्मण का झण्डा उतार फेंको और पिछड़े-दलित अपने डण्डों में अपना ही झण्डा लगाओ।मुलायम सिंह यादव ने इसे समझा और बहुजन का झण्डा बहुजन के डण्डे में लगा दिया, परिणाम निकला, मिले मुलायम कांशीराम हवा हो गये जयश्री राम। पूरे उत्तर प्रदेश से ब्राह्मणवाद का किला हिल गया। इस प्रयोग का अन्त नहीं हुआहै। पिछड़ें वर्ग के लोग ब्राह्मणों का साथ देना छोड़ें, सामन्तों का साथ देना छोड़ें।वे अपने साथ दलितों को लेकर राजनीति अपनावें राजनीति करें। यही दलित पिछड़ों का मिलन देश भर में बहुजन राज कायम करेगा। जब तक पिछड़े वर्ग के लोग ब्राह्मण सवर्ण के साथ मिलकर समाज में जियेंगे, राजनीति करेगे, उनकी एकता और शक्ति छिन्न भिन्न रहेगी। दलितों के साथ मिलकर पिछड़े वर्ग के लोग रहें और शासन प्रशासन पर काबिज रहें। बहुसंख्यक और बहुमत होकर सम्मान और सत्ता से दूर रहना, वंचित रहना, अपमान जनक हैं।